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गरीब परिवार की कहानी भाग 2, Garib family ki kahani, hindi story kahani


**जीवन का सफर (भाग 2)**


अरुण अब शहर में अच्छी नौकरी कर रहा था। 

उसे बड़े-बड़े लोगों से मिलने का मौका मिल रहा था, और वह अपनी नई जिंदगी में पूरी तरह डूब गया था। 

गांव की सादगी और अपने पिता की मेहनत उसे धीरे-धीरे पीछे छूटती यादें लगने लगीं। 

माया अपने पिता के साथ ही गांव में रहती थी और खेती का काम संभाल रही थी। 

वह हमेशा अपने भाई से संपर्क में रहती, लेकिन अरुण के पास अक्सर समय नहीं होता था।



एक दिन रामेश्वर की तबीयत अचानक बिगड़ गई। उसने माया से अरुण को बुलाने के लिए कहा। 

माया ने भाई को फोन किया, लेकिन अरुण किसी मीटिंग में व्यस्त था। 

उसने कहा कि वह कुछ दिनों में आएगा। 

लेकिन रामेश्वर का स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा था। 

वह अपने बेटे का इंतजार करता रहा, लेकिन अरुण नहीं आया। 



रामेश्वर ने माया का हाथ पकड़कर कहा, "बेटी, तुमने हमेशा मेरा साथ दिया। 

मुझे तुम पर गर्व है। 

मुझे उम्मीद थी कि अरुण भी हमारे गांव की मिट्टी को समझेगा, लेकिन शायद मैंने उससे ज्यादा उम्मीदें लगा लीं।" 

इतना कहकर रामेश्वर की आंखें बंद हो गईं और उसने अपनी अंतिम सांस ली।



माया टूट गई, लेकिन उसने अपने आंसुओं को पोंछा और पिता की अंतिम इच्छा पूरी करने का संकल्प लिया। 

उसने अरुण को फिर से फोन किया और उसे बताया कि उनके पिता अब नहीं रहे। 

यह सुनकर अरुण को जैसे जोर का झटका लगा। वह तुरंत गांव के लिए रवाना हुआ। 


गांव पहुंचने पर उसने देखा कि उसके पिता का अंतिम संस्कार हो चुका था। 

माया ने उसे कुछ नहीं कहा, लेकिन उसकी आंखों में वह सारे सवाल थे जो अरुण कभी समझ नहीं पाया। 

गांव के लोगों ने उसे बताया कि उसके पिता ने कितनी मेहनत की थी ताकि वह एक अच्छी जिंदगी जी सके। 

अरुण को अपनी भूल का एहसास हुआ, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी।



अरुण ने अपने पिता की याद में गांव में एक स्कूल खुलवाया, जहां गांव के बच्चों को मुफ्त में पढ़ाया जाने लगा। 

वह खुद भी कई बार गांव आकर बच्चों को पढ़ाने लगा। 

हालांकि, उसने अपने पिता को खो दिया था, लेकिन अब वह अपने गांव की मिट्टी और अपने पिता की विरासत को समझने लगा था।




जीवन का सफर ऐसे ही चलता रहा, पर अरुण ने अपने पिता की उम्मीदों को पूरा करने की ठान ली।



समाप्त

यह कहानी हमें सिखाती है कि जीवन में सफलता पाने की होड़ में हम कभी-कभी अपनों की कद्र करना भूल जाते हैं।

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